ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्यदेव को ग्रहों का राजा माना गया है जिस कारण ऐसा माना गया है कि इनकी कृपा कुंडली के सभी ग्रह दोषों से छुटकारा मिलता है। वहीं धर्म ग्रंथों में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना गया है। सूर्य की रोशनी से ही जीवन संभव है इसलिए पंचदेवों में इनकी पूजा भी अनिवार्य रूप से की जाती है। पौष मास (इस बार 23 दिसंबर से 21 जनवरी तक) में सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है। ग्रंथों में सूर्यदेव के परिवार व उनके बारे में बहुत सी रोचक बातें बताई गई हैं जो आम लोग नहीं जानते, जो इस प्रकार है-

1) सूर्यदेव से जुड़ी विशेष बातें

1. धर्म ग्रंथों के अनुसार, सूर्यदेव की माता अदिति व पिता महर्षि कश्यप हैं। अदिति का पुत्र होने से इन्हें आदित्य भी कहते हैं।

2. सूर्यदेव का विवाह देवशिल्पी विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ है। यजुर्वेद ने सूर्य को भगवान का नेत्र कहा गया है।

3. धर्म ग्रंथों में सूर्यदेव व संज्ञा के दो पुत्र व एक पुत्री बताए गए हैं, ये हैं वैवस्वत मनु व यमराज तथा यमुना।

4. सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण संज्ञा ने अपनी छाया उनके पास छोड़ दी और स्वयं तप करने लगीं। 

5. सूर्यदेव व संज्ञा की छाया से शनिदेव, सावर्णि मनु और तपती नामक कन्या हुई। सूर्य व शनि शत्रु माने जाते हैं। 

6. त्रेतायुग में कपिराज सुग्रीव और द्वापर युग में महारथी कर्ण भगवान सूर्य के अंश से ही उत्पन्न हुए थे।

7. पक्षीराज गरुड़ के भाई अरुण सूर्यदेव का रथ चलाते हैं। इस रथ में 7 घोड़े हैं जो 7 दिनों का प्रतीक हैं।

8. सूर्यदेव की पूजा 12 महीनों में अलग-अलग नामों से की जाती है। गायत्री मंत्र में भी सूर्य की उपासना ही की गई है।

9. सूर्यदेव को पता चला कि संज्ञा घोड़ी के रूप में तप कर रही है तो वे भी उसी रूप में उनके पास पहुंचे। इसी से अश्विनकुमारों का जन्म हुआ।

ऋग्वेद के अनुसार, सूर्यदेव में पापों से मुक्ति दिलाने, रोगों का नाश करने, आयु और सुख में वृद्धि करने व गरीबी दूर करने की अपार शक्ति है।

- यजुर्वेद के अनुसार, सूर्यदेव की आराधना इसलिए की जानी चाहिए वह मानव मात्र के सभी कामों के साक्षी हैं और उनसे हमारा कोई भी काम या व्यवहार छुपा नहीं रहता।

- ब्रह्मपुराण के अनुसार, सूर्यदेव सर्वश्रेष्ठ देवता हैं। इनकी उपासना करने वाले भक्त जो सामग्री इन्हें अर्पित करते हैं, सूर्यदेव उसे लाख गुना करके लौटाते हैं।

- सूर्योपनिषद के अनुसार, सभी देवता, गंधर्व और ऋषि सूर्य की किरणों में वास करते हैं। सूर्यदेव की उपासना के बिना किसी का भी कल्याण संभव नहीं है।

- स्कंदपुराण के अनुसार, सूर्यदेव को जल चढ़ाए बिना भोजन करना पाप कर्म के समान माना जाता है।