पति को परमेश्वर का स्थान

हिन्दू धर्म में पति को परमेश्वर का स्थान दिया गया है। रूढ़िवादी समाज का मानना है कि पति के सेवा में ही स्त्री का स्वर्ग है और अपने इस कथन को आधार देने के लिए वे माता लक्ष्मी का उदाहरण देते हैं, जिन्हें हमेशा अपने पति भगवान विष्णु के चरणों के निकट बैठा हुआ ही दिखाया गया है।



देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु

हमारे समाज का ये मानना है कि जब धन की देवी लक्ष्मी अपने पति के चरणों में अपना स्वर्ग तलाश सकती हैं तो आज की महिलाएं जो खुद को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्रता प्रदान कर चुकी हैं, उनके लिए पति की सेवा करना कौन सी बड़ी बात है। लेकिन क्या वाकई माता लक्ष्मी और विष्णु के चित्र को जो अवधारणा प्रदान की गई है, उसके पीछे की हकीकत वैसी ही है?


चरणों में वास

शायद नहीं, ऐसा लगता है देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का चित्र हिन्दू धर्म में भ्रांति फैलाने का कार्य कर रहा है, क्योंकि जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए माता लक्ष्मी ने अपने पति के चरणों के निकट वास किया है वो पूरी तरह भिन्न है।



ब्रह्मांड के पालनहार

हिन्दू पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार माता लक्ष्मी की एक बहन हैं, अलक्ष्मी। जहां देवी लक्ष्मी, धन, सौभाग्य और वैभव की देवी हैं वहीं अलक्ष्मी, दरिद्रता, निर्धनता आदि का प्रतीक कही जाती हैं। विष्णु को पालनहार कहा जाता है, जिनका दायित्व घर-परिवार समेत समस्त ब्रह्मांड की रक्षा करना है और देवी लक्ष्मी इन्हीं पालनहार को दरिद्रता और दुर्भाग्य से बचाने के लिए उनके चरणों में बैठी हैं।


उल्लू का स्वरूप

अलक्ष्मी, लक्ष्मी देवी की बड़ी बहन हैं। बेहद कुरूप होने की वजह से उनका विवाह भी नहीं हो पाया। कहा जाता है कि जहां-जहां देवी लक्ष्मी जाती हैं, अलक्ष्मी उनके पीछे-पीछे वहां पहुंचती हैं। कभी अपने स्वरूप में तो कभी देवी लक्ष्मी की सवारी उल्लू के स्वरूप में।