51 शक्तिपीठ में से एक है देवी मां अलोप शंकरी की मंदिर। देश में प्रसिद्ध माता अलोप शंकरी के मंदिर में देवी माँ की निराकार स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के पावन पर्व पर मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। अलोप शंकरी देवी माँ की मूर्ति की नहीं बल्कि भक्त यहां पालने की पूजा करते हैं। इस मंदिर में ऐसा क्यूँ होता है। इसकी कहानी उतनी ही अद्भुत है जितना कि ये मंदिर। पत्रिका डॉट कॉम की टीम ने जाना क्या है इसके पीछे का रहस्य।
माता सती की दाहिने हाथ का पंजा यहाँ पर गिरा और अलोप हो गया था, तभी से देवी मां की अदृश्य रूप की पूजा अर्चना होती है। अलोप शंकरी मंदिर में माता का विशेष श्रृंगार और पूजा अर्चना की जाती है।
भक्तों की होती है मनोकामना पूर्णशारदिय नवरात्रि के पावन पर्व पर पूरे नवदिन देवी मां की दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। यहां पर पूजा अर्चना करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। नवरात्रि में दूर-दूर से आये भक्त सबसे पहले संगम में आस्था की डुबकी लगाकर स्नान करते हैं, उसके बाद देवी मां के मंदिर में आकर दर्शन कर मन्नत मांगते है। साथ ही जिस भक्त की मनोकामना पूर्ण हो जाती है, वह देवी मां के प्रांगण में विशेष पूजा अर्चना कराता है।
मूर्ति नहीं बल्कि निराकार स्वरूप की पूजामंदिर के पुजारी शिवानंद पूरी ने पत्रिका टीम से खास बातचीत करते हुए बताया कि भगवान विष्णु ने सभी देवताओं के आग्रह पर शिव जी का मोह माता सती के प्राण विहीन शरीर से छुड़ाने के लिए सुदर्शन चक्र से वार किया था। जिसके बाद उस वार से सती के दाहिने हाथ का पंजा कटकर इसी स्थान पर गिरा था। उसके बाद वह पंजा अलोप हो गया था। तभी से यहां पर देवी माँ की निराकार स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। माता के प्रतीक में यहां पर पालना की पूजा अर्चना की जाती है। दाहिना हाथ का देवी सती का पंजा अलोप हो गया था इसीलिए यह शक्तिपीठ अलोपशंकरी के नाम से प्रसिद्ध है।
नए जोड़ो की होती है शादीअलोपशंकरी मंदिर के प्रांगण में नए जोडों की शादी की जाती है। लोगों की यह मान्यता है कि देवी मां के प्रांगण में शादी करने से नवदम्पति जीवन शुखमय बिताता है, इसलिए यहां पर हर वर्ष शुभमुहूर्त में शादी होती है। नवरात्रि के पावन पर्व पर भी बहुत से भक्त यही से नवजीवन की शुरुआत करते हैं।
सुहाग की सामग्री से पति की लंबी आयुमंदिर के पुजारी शिवानंद पूरी ने बतया कि माता के मंदिर में फूल, माला, नारियल, चूड़ी, सिंदूर, चुनरी, बिंदी और पूड़ी-हलुआ का रोट चढ़ाया जाता है। नवदम्पति माता-पिता बनते ही बच्चे के साथ देवी माँ के दर्शन लिए आते हैं और मान्यता की चढ़ावा चढ़ाते हैं।
साल भर भक्तों का तांताअलोप शंकरी देवी मां के मंदिर में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है। भक्तों भीड़ देखते हुए मंदिर प्रशासन भीड़ कंट्रोल के लिए कई सुविधा की है। भक्त लाइन क्रम से माता की दर्शन करें। इसके लिए पुलिस बल भी तैनात किया गया है। सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम रहते है।