बात 2017 की है उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जब 15 साल बाद सत्ता में वापसी हुई थी, तो उस समय दिल्ली से लेकर लखनऊ तक नए मुख्यमंत्री के चयन को लेकर बैठकों का दौर जारी था। सबसे ज्यादा चर्चा गाजीपुर से सांसद और केंद्र में मंत्री मनोज सिन्हा की थी। लेकिन जब मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान हुआ तो वह नाम सामने आया, जिसकी चर्चा दूर तक नहीं थी। और नाम था, गोरखपुर से 5 बार के सांसद और गोरक्ष पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditanath) । उस समय यही माना गया कि भाजपा ने उनकी कट्टरवादी हिंदू की छवि को देखते हुए  यह दांव चला है। उस वक्त उनके आलोचकों का यह मत था कि योगी आदित्यनाथ के पास उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश की सरकार चलाने का अनुभव नहीं है, ऐसे में वह ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएंगे।



लेकिन 2022 तक आते-आते योगी आदित्यनाथ ने न केवल अपने आलोचकों की उस धारणा को पूरी तरह से तोड़ दिया, बल्कि इस दौरान कई रिकॉर्ड बना डाले। मसलन वह 2020 में भाजपा के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बने जो 3 साल से ज्यादा समय तक अपने पद पर रहे। इसके बाद उन्होंने 5 साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बनाया। और उसके बाद 2022 में वह कर दिखाया जो पिछले 37 वर्षों में कोई नहीं कर पाया। सत्ता में दोबारा वापसी के बाद उनका राजनीतिक कद काफी बढ़ चुका है। और उसकी बानगी आने वाले समय में  2024 में भी दिखेगी।  पिछले 5 सालों में जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने अपने राजनीतिक करियर (Yogi Adityanath Political Career) को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है, उस सफर तक पहुंचने की कहानी भी काफी दिलचस्प है..


शुरूआती सफर

योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल में एक राजपूत परिवार में हुआ था। शुरूआती जीवन और शिक्षा आज के उत्तराखंड (नवंबर 2000 से पहले उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था) में ही पूरी हुई। लेकिन उनके जीवन में अहम मोड़ तब आया जब गोरखपुर आए और महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली और 1994 में संन्यासी बन गए। और फिर 1998 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। यहां से उनके राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई । और फिर वह लगातार 5 बार गोरखपुर के सांसद रहे। इसी बीच वह महंत अवैद्यनाथ की मृत्यु के बाद  गोरक्ष पीठ के महंत भी बने। और 2017 में जब मुख्यमंत्री बनाए गए, तो उस वक्त उन्होंने विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ा था। वह सीधे मुख्यमंत्री बनाए गए। और फिर उसी गोरखपुर से 2022 में विधानसभा चुनाव जीतकर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।


सख्त प्रशासक की बनाई छवि

मुख्यमंत्री के रूप में उनके पिछले 5 साल के कार्यकाल को देखा जाय तो, वह अपनी छवि एक सख्त प्रशासक के रूप में बनाने में कामयाब रहे हैं। साथ ही इन 5 साल में उन्होंने अपराधियों पर जीरो टॉलरेंस की नीति को लागू किया है। जिसका असर भी प्रदेश में दिख रहा है। और उस कोशिश का ही परिणाम रहा कि जब राम नवमी पर दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश में जहां सांप्रदायिक दंगे हुए, वहीं उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य में कोई दंगे नहीं हुए। हालांकि उनकी बुलडोजर नीति पर विपक्ष हमेशा सवाल उठाता रहा है। और आरोप लगाता है कि धर्म के नाम पर कार्रवाई की जाती है। और उनके कार्यकाल में ठाकुर वाद को बढ़ावा देने के भी आरोप लगते रहे हैं। इसी तरह हाथरस , उन्नाव जैसी घटनाएं महिला सुरक्षा पर भी सवाल खड़े करती हैं।

मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे बड़ी चुनौती कोविड-19 महामारी थी। क्योंकि करीब 22 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले राज्य में विशेषज्ञों ने सबसे ज्यादा तबाही मचने की आशंका जताई थी। हालांकि बाद में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में WHO ने उत्तर प्रदेश सरकार के कदमों की सराहना की। लेकिन दूसरी लहर के दौरान राज्य के कई हिस्सों से सही समय पर उपचार नहीं मिलने से लोगों की मौत की भी तस्वीरें सामने आईं। इसके अलावा गंगा घाट के किनारे लोगों के दफनाने की तस्वीरें भी बड़ा मुद्दा बनी। लेकिन इस बीच वैक्सीनेशन में भी प्रदेश ने रिकॉर्ड बनाया। और जल्द ही वह देश का पहला राज्य बन जाएगा जहां पर 15 करोड़ लोगों को दोनों डोज लग जाएगी। इस कवायद का असर रहा कि प्रदेश में कोरोना पर काबू पाया जा सका।


ये हैं चुनौतियां

किसी राज्य की प्रगति में सबसे अहम होता है , राज्य का सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर और निवेश के लिए माहौल। मुख्यमंत्री के पहले कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ का फोकस सुरक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर प्रमुख रूप से रहा है। इसके लिए कारोबारी सुविधाओं को आसान कैसे किया जाय, यह भी एक बड़ी चुनौती होती है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में दूसरे पायदान पर पहुंचना, प्रदेश में एक्सप्रेस वे का जाल बिछाने के साथ-साथ बिजली की हालत सुधारने पर उनका खास जोर रहा है। और वह इस बात पर जोर दे रहे हैं कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था को अगले 5 साल में एक ट्रिलियन डॉलर की बनाना है। लेकिन  इस बड़े लक्ष्य को पाने के लिए उन्हें कॉरपोरेट जगत का न केवल भरोसा जीतना होगा  बल्कि प्रदेश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को भी बड़ा बूस्ट देना होगा। इसके अलावा उनके सामने युवाओं के सपने पूरे करने और प्रदेश की 37.79 फीसदी आबादी (नीति आयोग की रिपोर्ट-Multidimensionally poor index) को गरीबी के कुचक्र से निकाले की बड़ी चुनौती है।