सरकार ने देश में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के विकास और कोऑपरेटिव सेक्टर (cooperative sector) में पारदर्शिता लाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत देशभर में सक्रिय 63,000 प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसाइटीज (पैक्स) के कम्प्यूटरीकरण किया जाएगा। इसके तहत प्रत्येक समिति पर करीब चार लाख रुपये खर्च किए जाएंगे। इसमें 75 फीसदी हिस्सा केंद्र वहन करेगा जबकि बाकी खर्च राज्य और नाबार्ड उठाएंगे। इससे करीब 13 करोड़ किसानों (farmers) को फायदा होगा। इसमें अधिकांश छोटे और सीमांत किसान शामिल हैं। कैबिनेट ने पैक्स के कम्प्यूटरीकरण को मंजूरी दे दी है। कुल 2516 करोड़ रुपये के बजट के साथ 63,000 कार्यरत पैक्स को कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने पैक्स के कम्प्यूटरीकरण को मंजूरी दी। इसका मकसद पैक्स की दक्षता बढ़ाने तथा उनके संचालन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाना है। इससे पैक्स को अपने बिजनस में विविधता लाने और विभिन्न गतिविधियां/सेवाएं शुरू करने की सुविधा मिलेगी। इस परियोजना में कुल 2516 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है जिसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी 1528 करोड़ रुपये की होगी। पैक्स देश में अल्पकालिक सहकारी ऋण (एसटीसीसी) की त्रि-स्तरीय व्यवस्था में सबसे निचले स्तर पर अपनी भूमिका निभाती हैं। करीब 13 करोड़ किसान इसके सदस्य हैं और यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित होती हैं। प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा कि पैक्स के कम्प्यूटरीकरण से करोड़ों किसानों को फायदा होगा। यह फैसला खासकर छोटे और सीमांत किसानों को लाभ पहुंचाएगा। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और सेवाओं की आपूर्ति बेहतर हो सकेगी।
क्या है पैक्स
देश में सभी संस्थाओं द्वारा दिए गए केसीसी ऋणों में पैक्स का हिस्सा 41 प्रतिशत (3.01 करोड़ किसान) है। पैक्स के माध्यम से इन केसीसी ऋणों में से 95 प्रतिशत (2.95 करोड़ किसान) छोटे और सीमांत किसानों को दिए गए हैं। अन्य दो स्तरों अर्थात राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबी) और जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) को पहले ही नाबार्ड द्वारा स्वचालित कर दिया गया है और उन्हें साझा बैंकिंग सॉफ्टवेयर (सीबीएस) के तहत ला दिया गया है। कुछ राज्यों में, पैक्स का आंशिक आधार पर कम्प्यूटरीकरण किया गया है।