सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे ए जी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया है। पेरारिवलन 30 साल से ज्यादा वक्त से जेल में बंद है। शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई में ही कहा था कि अगर सरकार कोई फैसला नहीं लेगी तो हम उसे रिहा कर देंगे।


पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया था सख्त रुख


शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई में ही सरकार के रुख को 'विचित्र' माना। दरअसल, केंद्र ने जवाब दिया कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने दोषी को रिहा करने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को राष्ट्रपति को भेज दिया है जो दया याचिका पर निर्णय लेने के लिए सक्षम अथॉरिटी हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब जेल में कम समय की सजा काटने वाले लोगों को रिहा किया जा रहा है, तो केंद्र उसे रिहा करने पर सहमत क्यों नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया उसे लगता है कि राज्यपाल का फैसला गलत और संविधान के खिलाफ है क्योंकि वह राज्य मंत्रिमंडल के परामर्श से बंधे हैं और उनका फैसला संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। न्यायमूर्ति एलएन राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि वह एक सप्ताह में उचित निर्देश प्राप्त करें वरना वह पेरारिवलन की दलील को स्वीकार कर इस अदालत के पहले के फैसले के अनुरूप उसे रिहा कर देगी।

विशेषाधिकार के तहत सुनाया फैसला

शीर्ष अदालत ने पेरारिवलन को रिहा करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार के जरिए आदेश सुनाया है। पेरारिवलन मामले में दया याचिका राज्यपाल और राष्ट्रपति के बीच लंबित रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य कैबिनेट का फैसला राज्यपाल पर बाध्यकारी है और सभी दोषियों की रिहाई का रास्ता खुला हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट का ब्रह्मास्त्र
जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया। पीठ ने कहा, ‘राज्य मंत्रिमंडल ने प्रासंगिक विचार-विमर्श के आधार पर अपना फैसला किया था। अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए, दोषी को रिहा किया जाना उचित होगा।’ संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को विशेषाधिकार देता है, जिसके तहत संबंधित मामले में कोई अन्य कानून लागू ना होने तक उसका फैसला सर्वोपरि माना जाता है।

2014 में शीर्ष अदालत ने बदला था फैसला

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे ए जी पेरारिवलन को अदलात ने यह देखते हुए 9 मार्च को जमानत दे दी थी कि सजा काटने और पैरोल के दौरान उसके आचरण को लेकर किसी तरह की शिकायत नहीं मिली। शीर्ष अदालत 47 वर्षीय पेरारिवलन की उस याचिका पर सुनाई कर रही थी, जिसमें उसने ‘मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी’ (एमडीएमए) की जांच पूरी होने तक उम्रकैद की सजा निलंबित करने का अनुरोध किया था। तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदुर में 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था जिसमें राजीव गांधी मारे गए थे। महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी। न्यायालय ने मई 1999 के अपने आदेश में चारों दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी को मौत की सजा बरकरार रखी थी। शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी 2014 को पेरारिवलन, संथन और मुरुगन की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा उनकी दया याचिकाओं के निपटारे में 11 साल की देरी के आधार पर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का निर्णय किया था।