नई दिल्ली : आपने अक्सर इंसान को मरने के दौरान तड़पते और दर्द में कर्राते हुए सुना होगा। लेकिन क्या आपने यह सुना है कि इंसान के मरने से पहले उसका दिमाग उसको मरने नहीं देता। कहा जाता है कि मौत के बारे में व इसके रहस्यों को कोई भी अब तक सही से जान नहीं पाया है और ना ही समझ पाया है। विज्ञान व अध्यात्म में अाज तक अटकने ही लगाई ही जाती रही हैं।लेकिन इस मौत के रहस्य को कोई सुल्झा नहीं पाया। इतना तो सबको पता है कि मरना जीवन का सत्य है।कोई जन्म लेता है और अंत में मर जाता है।

क्या आपकों पता है इंसान के मरने से पहले उसका दिमाग करता है ये काम जाने क्या है वो...
आपकों बता दें कि जन्म से लेकर मृत्यु के बीच एक लंबा रास्ता तय करना होता है। जन्म से पहले से ही दिमाग काम करना शुरु कर देता है। लेकिन क्या आप जानतें हैं कि जब कोई मरने वाला होता है, तो उसका दिमाग कैसे काम करता है और मरने से ठीक पहले दिमाग क्या सोच रहा होता है।
गौरतलब है कि इसके बारे में तो किसी को नहीं पता होगा। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि दिमाग से जुड़ी कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जिसे पढ़कर आपको भैचके रह जाएगें। मरने से पहले दिमाग क्या-क्या सोचता है, इस बारे में सटीक और पूरी जानकारी तो किसी को भी नहीं पता हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस बारे में कुछ जानकारी तो जरुर जुटाई है,जिसे तंत्रिका-विज्ञान कहते हैं इसके बारे में कुछ दिलचस्प जानकारियां मिली हैं।

वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन हेतु कुछ मरीजों के तंत्रिका तंत्र को बारीकी से देखा। इससे पहले उन्होंने मरीजों के परिवार वालों से अनुमती ली। वैज्ञानिकों ने जब इंसान और पशु दोनों के ही दिमाग का अध्ययन किया, तो पाया कि मौत के वक्त दोनों के ही दिमाग एक ही तरीके से काम करे हैं।
उन्होंने बताया कि एक ऐसा भी वक्त आता है जब दिमाग का काम-काज बंद हो जाता है, लेकिन फिर से वो काम करना शुरु कर देता है। वैज्ञानिकों ने जितनी जानकारी मिली,वो ज्यादातर पशुओं पर किए गए अध्ययन से मिली है।
हम अभी तक ये जानते हैं कि जब किसी की मौत होती है, तो शरीर में खून का प्रवाह रुक जाता है और इस वजह से दिमाग में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इस दौरान सेरेब्रल इस्किमया एक स्थिति पैदा हो जाती है, जिसके चलते एक केमिकल कंपोनेंट कम हो जाते हैं और जिससे दिमाग में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी पूरी तरह खत्म हो जाती है।
वैज्ञानिक मौत की इस प्रक्रिया को और अच्छे से समझना चाहते थें इसलिए उन लोगों ने कुछ गंभीर अवस्था में पड़े मरीजों के दिमाग की न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों की निगरानी की। इस दौरान डॉक्टरों ने वैज्ञानिकों ने साफ निर्देश दिया था कि किसी भी मरीज को बेहोशी से वापस लाने के लिए इलेक्ट्रोड ना दी जाए।
वैज्ञानिकों ने पाया कि 9 में से 8 मरीजों के दिमाग उनकी मौत को टालने की कोशिश कर रही थीं। उन्होंने पाया कि दिल की धड़कन रुकने के बाद भी दिमाग की कोशिकाएं और न्यूरॉन काम कर रहे थें।